“मैं हिंदी हुं!”

भारतमाता का अनमोल गहना हुं,
मैं भारत की शान हुं,
मैं राष्ट्रभाषा हिंदी हुं…
प्रेम की भाषा हुं,
एकता की निशाणी हुं,
विश्व में बोली जानेवाली शीर्ष भाषा हुं,
भारत की शान हू, मैं राष्ट्रभाषा हिंदी हुं…
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की मै भी एक कडी हुं,
स्वतंत्र हिंदुस्तान की शान हुं,
मैं राष्ट्रभाषा हिंदी हुं…
नेताओने देकर नारे,
हाशील कियें आजादी के स्वप्न हमारे,
इन सबकी मैं आवाज हुं,
हिंदुस्तान की लाडली बेटी मैं हिंदी हुं…
जनता की आवाज हुं,
मीडिया की जान हुं,
लोकशाही का आधार हुं ,
मैं राष्ट्रभाषा हिंदी हुं …
जब जब देश फसा धर्म जाती बटवारों मे,
सबको एकता में जोडनेवाला मैं धागा हुं,
मैं भारत की शान हुं,राष्ट्रभाषा हिंदी हुं…
कवयित्री – कु. हर्षदा आनंद पिंपळे इयत्ता नववी,विद्या मंदिर कन्या प्रशाला वैराग तालुका बार्शी जिल्हा सोलापूर मो. नं.8888144094